सूरदास के मशहूर दोहे, पद हिंदी अर्थ सहित : Surdas ke Dohe in Hindi

Surdas ke Dohe in Hindi: सूरदास 16 वी शताब्दी के एक महान संत, कवि और संगीतकार थे जो अपने धार्मिक भजनों, कविताओ और दोहों के लिए जाना जाता हैं। सूरदास जी की ज्यादातर रचनाए भगवान श्री कृष्ण पर होती थी। सूरदास बचपन से ही नेत्रहीन थे पर जिस प्रकार से उनके भजनों में भगवान कृष्ण की प्रशंसा में वर्णन होता था उससे दिखायी ना देने पर संदेह किया जाता रहा। सूरदास को एक संत के रूप में जाना जाता था जिससे उन्हें संत सूरदास के नाम से भी बुलाया जाता हैं। आज के इस लेख में हम सूरदास के दोहे और पद अर्थ (meaning) और भाव सहित बताने जा रहे हैं।

सूरदास जी के जन्म और मृत्यु की तिथि के पक्के प्रमाण मौजूद नहीं हैं। सूरदास जी 100 साल से ज्यादा जिए थे जिससे ये जानना और मुश्किल हो जाता हैं। कुछ लोगो का मानना हैं उनका जन्म 1479 में सिरि नाम के गाव में हुआ जो दिल्ली के पास स्थित हैं। कुछ लोगो का ये भी कहना हैं की सूरदास बृज में जन्मे थे जो धार्मिक स्थल मथुरा में पड़ता हैं जो श्री कृष्ण के निवास स्थल के रूप में जाना जाता हैं।

इनका परिवार बहुत गरीब था जिससे इनका लालन पोषण सही से नहीं हो सका। सूरदास 6 साल की आयु में ही घर ही निकल दिए थे और एक धार्मिक संगीतकार के ग्रुप में शामिल हो गए थे। एक ईतिहासकार के अनुसार एक रात को सूरदास जी को एक स्वप्न आया जिसमे भगवान कृष्ण आये और उन्होंने उन्हें वृंदावन जाकर अपनी पूरी जिंदगी भगवन को समर्पित करने को कहा।

विद्यालय में छात्रो को भी दोहों और पद के बारे में पढाया जाता है। इसलिए स्कूल में कक्षा 5,6,7,8,9 और क्लास 10 के छात्र भी इंटरनेट पर सूरदास के दोहे भाव सहित सर्च करते है। नीचे सूरदास के दोहे अर्थ सहित दिए गए है।

सूरदास के दोहे : Surdas ke Dohe in Hindi

Surdas ka Doha #1

मुख दधि लेप किए सोभित कर नवनीत लिए,
घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए।
चारु कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए,
लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए।
कठुला कंठ वज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए,
धन्य सूर एकौ पल इहिं सुख का सत कल्प जिए।

दोहे का हिंदी अर्थ : सूरदास के इस दोहे में कृष्ण के बचपन के बारे में बात की गए हैं की जब वो छोटे थे तब वो घुटनों के बल ही चल रहे हैं। उन्होंने अपने हाथो में ताज़ा मक्खन ले रखा था और उनके पूरी शरीर पर मिटटी लगी हुई थी। उनके चेहरे पर दही लगी हैं। गाल उनके उभरे हुए बड़े प्यारे लग रहे हैं और आँखे चपल दिखाई दे रही हैं। कान्हा के माथे पर गोरोचन का तिलक लगा हुआ हैं।

उनके बाल घुंगराले और लम्बे हैं जो चलते समय उनके कपोल पर आ जाते हैं दिखने में कुछ ऐसे लगते हैं जैसे भवरा रस पीकर मस्त हो कर घूम रहा हैं। कान्हा के गले में पड़ा हुआ कंठहार और सिंह नख उनकी सुन्दरता को और बढ़ा देता हैं। कृष्ण के इस सुन्दर बालरूप का दर्शन अगर किसी को हो जाए तो उसका जीवन सफल हो जाता हैं। नहीं तो सौ कल्पो तक जिया गया जीवन भी बेमतलब होता हैं।

Surdas ka Doha #2

मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ,
मोसौं कहत मोल कौ लीन्हौ, तू जसुमति कब जायौ।
कहा करौं इहि के मारें खेलन हौं नहि जात,
पुनि-पुनि कहत कौन है माता, को है तेरौ तात।
गोरे नन्द जसोदा गोरी तू कत स्यामल गात,
चुटकी दै-दै ग्वाल नचावत हँसत-सबै मुसकात।
तू मोहीं को मारन सीखी दाउहिं कबहुँ न खीझै,
मोहन मुख रिस की ये बातैं, जसुमति सुनि-सुनि रीझै।
सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत,
सूर स्याम मौहिं गोधन की सौं, हौं माता तो पूत।

दोहे का हिंदी अर्थ : इस संत सूरदास के दोहे में कृष्ण के बचपन के एक किस्से के बारे में लिखा गया हैं जिसमे बाल कृष्ण अपनी माँ यशोदा से अपने बड़े भाई बलराम की शिकायत करते हुए कहते हैं की बलराम मुझे चिढाता रहता हैं और कहता हैं आपने मुझे जन्म नहीं दिया हैं और मुझे आपने पैसे देके ख़रीदा हैं। इस वजह से मैं बाहर खेलने नहीं जाता। जब मैं खेलने जाता हु तो वो मुझसे पूछते हैं की तुम्हारे माता पिता कौन हैं।

वो कहते हैं माता यशोदा और नन्द बाबा दोनों गोरे हैं तो तू सांवला कैसे हो गया हैं। ये कहते हुए सब बच्चे हँसते हैं और मेरा मखौल उड़ाते हैं। ये सब पता होने के बाद भी तुम तो मुझे ही डांटती हो भाई को कुछ नहीं बोलती। आज तुम गाय माता की सौगंध खाकर बता की मैं तेरा ही बेटा हूँ। कान्हा की इन मासूम बातो को सुनकर मय्या यशोदा हंसने लगती हैं।

Surdas ke Pad #3

चरन कमल बंदौ हरि राई,
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै आंधर कों सब कछु दरसाई।
बहिरो सुनै मूक पुनि बोलै रंक चले सिर छत्र धराई,
सूरदास स्वामी करुनामय बार.बार बंदौं तेहि पाई।

सूरदास के दोहे का हिंदी अर्थ : इस दोहे में सूरदास का तात्पर्य हैं की जब श्री कृष्ण की कृपा किसी पर होती हैं तो पैर से अपाहिज भी पर्वत को आसानी से पार कर जाता हैं और आँखों से अंधे को भी दिखाई देने लगता हैं। गूंगा व्यक्ति बोलने लगता हैं और बहरा भी सुनने लगता हैं। जिसके के पास खाने पीने के भी पैसे नहीं हैं यानी इतना गरीब हैं वो भी कृष्ण की कृपा से अमीर बन जाता हैं। आगे सूरदास कहता हैं की भला इतने दयालु श्री कृष्ण की प्राथना वंदना किसे नहीं करनी चाहिए।

सूरदास का दोहा #4

बुझत स्याम कौन तू गोरी, कहां रहति काकी है..बेटी देखी नही कहूं ब्रज खोरी।
काहे को हम ब्रजतन आवति खेलति रहहि आपनी पौरी।
सुनत रहति स्त्रवननि नंद ढोटा करत फिरत माखन दधि चोरी।
तुम्हरो कहा चोरी हम लैहैं खेलन चलौ संग मिलि जोरी ।
सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि बातनि भूरइ राधिका भोरी।

दोहे का हिंदी अर्थ: सूरदास दवारा लिखित इन पक्तियो में श्री कृष्ण और राधा के प्रथम मिलन के बारे में बात की गई है। कृष्ण राधा से पूछता है की गोरी तुम कौन हो? तुम कहाँ रहती हो? तुम्हे पहले कभी यहाँ देखा नहीं। तुम हमारे यहाँ बृज में क्यों चली आई। तुम अपने ही आँगन में खेलती। इस पर राधा कहती है मैं सुना है नन्द का लड़का माखन की चोरी करता है। इसके जवाब में कृष्ण कहता है की मैं तेरा क्या चुरा लूँगा? फिर कहता है चलो हम मिल जुलकर खेलते है। इस दोहे में सूरदास जी बताते है की कृष्ण भोली भाली राधा को अपनी बातो में बहला लेता है।

सूरदास के दोहे #5

अबिगत गति कछु कहति न आवै।
ज्यों गुंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै।
परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै।
मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै।
रूप रैख गुन जाति जुगति बिनु निरालंब मन चक्रत धावै।
सब बिधि अगम बिचारहिं तातों सूर सगुन लीला पदगावै।

सूरदास के दोहे का भाव – इस दोहे में सूरदास कहता है निराकार ब्रह्म के बारे में सही से बता पाना मुमकिन नहीं है। निर्गुण ब्रह्म का ना कोई आकार होता है ना कोई स्वरूप, इसलिए इनके बारे में बताया नहीं जा सकता। इसे बस महसूस किया जा सकता है। इस बात को सूरदास एक उदाहरण से बताते है की जिस तरह एक गूंगा मिठाई को खाकर उसके स्वाद के में बता नहीं सकता। वो बस उस मिठाई के स्वाद को महसूस ही कर सकता है।

कुछ बाते बोलकर बताई नहीं जा सकती, उन्हें बस महसूस किया जा सकता है। दोहे आगे सूरदास कहता है की श्री कृष्ण की लीलाओं के बारे में बताने में जो आनंद उन्हें मिलता है उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता।

दोहा #5

बिनु सत्संग कीन्हे, निरागस चरन कमल।
सत्संग के संग सुख होय, कहत सूरदास प्रणम।

दोहे का अर्थ: इस दोहे में संत सूरदास का कहना है की बिना सत्संग के कोई भी व्यक्ति भक्ति और आत्मिक सुख को प्राप्त नहीं कर सकता। सत्संग करने से ही साधक को दिव्य सुख और भक्ति का अनुभव ले पाता है। इसके साथ ही यहाँ पर कहाँ गया है की संतो के साथ रहना बहुत सुखदायक होता है और उन्हें प्रणाम किया गया है।

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दोस्तों हमें उम्मीद हैं आज का ये लेख सूरदास के दोहे : Surdas ke Dohe in Hindi? श्री कृष्ण के भगतो को जरुर अच्छा लगा होगा। अगर आपको ये संत सूरदास के दोहे और हिंदी अर्थ अच्छे लगे तो इन्हें दोस्तों के साथ शेयर जरुर करे।

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